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गोरखपुर। लॉक डाउन में फंसे परदेसियों की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं। तीसरे चरण का लॉक डाउन शुरू होने पर देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे गोरखपुर सहित पूर्वांचल के अन्य जिलों के कामगार परेशान हो उठे हैं। यूपी गवर्नमेंट की तरफ से जारी हेल्प लाइन नंबरों पर उनको कोई मदद नहीं मिल रही। कभी नंबर बिजी जा रहा है तो कभी कॉल करने पर फोन रिसीव करने वाले सही जवाब नहीं दे पा रहे। परदेस में फंसे प्रवासी मजदूरों, कामगारों, ठेकेदारों सहित अन्य लोगों के सामने रोटी का संकट खड़ा हो गया है। उनका कहना है कि यदि कोरोना के कहर से बच गए तो उनको भूख मार डालेगी। जो जहां पर ठहरा है वहां या तो खाने—पीने का प्रबंध नहीं है। या फिर उनको राशन नहीं मिल पा रहा। आसपास में खुलने वाली राशन की दुकानों से मिलने वाला सामान कई गुने महंगे दामों पर मिल रहा है। चेन्नई में फंसे सैकड़ों लोगों ने किसी तरह से घर पहुंचाने की गुहार सीएम योगी से लगाई है। वहां परदेसी मुसीबत में फंसे हैं तो उनकी समस्याओं को जानने के बाद परिवार के सदस्य भी बेहाल होने लगे हैं।
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चेन्नई के कासाग्रैंड, स्रुपमस बिल्डिंग थालामंबर में काम करने के लिए गोरखपुर के विभिन्न गांवों के 260 युवक फंसे हुए हैं। उनके ईदगिर्द के इलाके में पूर्वांचल के अन्य चार सौ लोग फंसे हुए हैं। इन लोगों का कहना है कि शुरूआत में कुछ सरकारी मदद मिली। लेकिन बाद में किसी ने ध्यान नहीं दिया। शिकायत करने पर लोकल प्रशासन सहायता करने के बजाय चुपचाप घर में रहने की हिदायत दे रहा है। मजदूर—ठेकेदार और अन्य कामगारों का कहना है कि लोकल मार्केट में मिलने वाला सारा सामान दो से तीन गुने दामों पर मिल रहा है। रुपए न होने से सभी के सामने भूखमरी का संकट पैदा हो गया है।
पैदल लौटेंगे घर, जिम्मेदार होगी सरकार
प्रवासियों ने एक आडियो जारी किया है। उनका कहना है कि यदि समस्या का समाधान नहीं हुआ तो पैदल ही अपने घर को रवाना होंगे। करीब दो हजार किलोमीटर का सफर तय करके वह लोग अपने—अपने घरों को वापस आएंगे। यदि रास्ते में कोई समस्या आई तो इसकी जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश सरकार की होगी। उनका कहना है कि हर प्रदेश के लिए जारी नोडल अफसरों के नाम और मोबाइल नंबर पर संपर्क करने के बावजूद मदद नहीं मिल पा रही। प्रवासियों की दिक्कत सामने आने पर गांव के लोगों ने अपने स्तर से प्रयास शुरू कर दिया है।
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फिर यही लोग आकर रेडजोन करके मुसीबत बढाएंगे सर।जो जहाँ है वहीं रहे , सरकार उनकी वहीं मदद करे तो ठीक रहता।
मामला काफी गम्भीर है, उन्हें वहीं रोकना चाहिए
इस तरह के मूवमेंट काफी ख़तरनाक हो सकते है
जब 2 महीने खुद का पेट नहीं पाल सकते है तो क्या ज़रूरत थी बाहर जाकर मज़दूरी करने की। अपने गांव में रहकर भी इससे ज्यादा कमा लेते ये लोग।यहाँ आकर सिर्फ परेशानी पैदा करेंगें।