सारथी बनकर कार सेवा में पहुंचे थे ओम प्रकाश पासवान, गर्व कर रहे विधायक बेटे

0
1405

• चाय पंचायत टीम

गोरखपुर। “आज उस ऐतिहासिक घटनाक्रम का चित्र साझा करने में गौरवान्वित हूं। जब मेरे पूज्य पिता स्व. ओम प्रकाश पासवान विधायक, हिंदू महासभा के नेतृत्व में पूज्य गोरक्षपीठाश्वर ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ जी महराज सांसद, गोरखपुर के सारथी बनकर हजारों कार सेवकों को लेकर अयोध्या पहुंचे और बाबरी ढाचे के ढहने के उपरांत कार सेवकों संग पूज्य महंत श्री रामचंद्र परमहंस जी सहित कार सेवा की।” ये शब्द लिखते हुए बांसगांव के भाजपा विधायक डॉ. विमलेश पासवान ने दो चित्र अपने फेसबुक वॉल से शेयर किए हैं। चित्र में आगे खड़े सफेद कुर्ता पहने एक व्यक्ति के हाथों में तसला है जिसमें संभवत: मिट्टी भरी है। वही शख्स डॉ. विमलेश पासवान के स्व. पिता ओम प्रकाश पासवान हैं। मानीराम के पूर्व विधायक ओम प्रकाश पासवान तब गोरक्षपीठ से जुड़ गए थे। बड़े महराज यानी कि ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ जी उनको अपना हनुमान बना चुके थे। बड़े महराज के आह्वान पर ओम प्रकाश पासवान भी सैकड़ों लोगों संग कार सेवा में शामिल हुए थे।

डॉ. विमलेश पासवान का कहना है कि पांच अगस्त को अयोध्या में श्रीराम मंदिर का शिलान्यास कार्यक्रम वाकई उनके लिए गर्व का विषय है। मानीराम में गरीबों के मसीहा माने जाने वाले ओम प्रकाश पासवान के छोटे पुत्र डॉ. विमलेश पासवान वर्तमान में बांसगांव विधान सभा क्षेत्र से विधायक हैं। जबकि बड़े पुत्र कमलेश पासवान तीसरी बार बांसगांव लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए हैं। पूर्वांचल की राजनीति में इस परिवार ने एक अलग पहचान बनाई है। डॉ. विमलेश पासवान की मां सुभावती देवी सांसद, विधायक और जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं। उनके चाचा भी मानीराम से विधायक चुने गए थे। भाभी रीतू पासवान नगर निगम में वार्ड मेंबर भी रह चुकी हैं।

गोरक्षपीठ का गहरा नाता, हरदम रही मौजूदगी
अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि का गहरा नाता गोरक्षपीठ से है। बताया जाता है कि 22-23 दिसंबर 1949 में जब विवादित ढांचे में रामलला का प्रकटीकरण हुआ। तब उस समय तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ साधु-संतों के साथ वहां संकीर्तन कर रहे थे। महंत अवैद्यनाथ ने 1984 में देश के सभी पंथों के शैव-वैष्णव सहित अन्य धर्माचार्यों को एक मंच पर लाकर श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया। तभी वह आजीवन अध्यक्ष चुने गए। महंत के नेतृत्व में सात अक्टूबर 1984 को अयोध्या से लखनऊ के लिए एक धर्म यात्रा निकाली गई। लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में ऐतिहासिक सम्मेलन हुआ जिसमें 10 लाख से अधिक लोग शामिल हुए। 1986 में जब फैजाबाद के जिला जज ने हिंदुओं को प्रार्थना करने के लिए विवादित मस्जिद के दरवाजे पर लगा ताला खोलने का आदेश दिया था। तो ताला खोलने के लिए वहां पर गोरखनाथ मंदिर के तत्कालीन महंत अवैद्यनाथ महराज मौजूद थे।

शिलान्यास की घोषणा, दलित से कराया शिलान्यास
22 सितंबर 1989 को अवैद्यनाथ महराज की अध्यक्षता में दिल्ली में विराट हिंदू सम्मेलन हुआ, जिसमें नौ नवंबर 1989 को जन्मभूमि पर शिलान्यास कार्यक्रम घोषित किया गया। तय समय पर एक दलित से शिलान्यास कराकर महंत ने आंदोलन को सामाजिक समरसता से जोड़ा। हरिद्वार के संत सम्मेलन में तो उन्होंने 30 अक्टूबर 1990 को मंदिर निर्माण की तिथि घोषित कर दी। निर्माण शुरू कराने के लिए जब वह 26 अक्टूबर को दिल्ली से अयोध्या के लिए रवाना हुए तो पनकी में गिरफ्तार कर लिए गए। 23 जुलाई 1992 में मंदिर निर्माण के लिए अवैद्यनाथ की अगुवाई में एक प्रतिनिधि मंडल तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से मिला। लेकिन जब बात नहीं बनी तो 30 अक्टूबर 1992 को दिल्ली में हुए पांचवें धर्म संसद में छह दिसंबर 1992 को मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा शुरू करने का निर्णय ले लिया गया। कारसेवा का नेतृत्व करने वालों में अवैद्यनाथ भी शामिल रहे। इसकी कार सेवा में ओम प्रकाश पासवान भी शामिल हुए थे। उसके बाद तो गोरखनाथ मंदिर जन्मभूमि आंदोलन का प्रमुख केंद्र बन गया। 12 सितंबर 2014 को अवैद्यनाथ के ब्रह्मलीन होने के बाद जिम्मेदारी योगी आदित्यनाथ ने संभाली।

Leave a Reply