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गोरखपुर। यूपी पुलिस की लोग भले आलोचना करें। लेकिन ऐसे भी पुलिस वाले हैं जो अपने कामकाज से विभाग का मान बढ़ा रहे हैं। गोरखपुर में तैनात दरोगा प्रमोद सिंह को सड़क पर कचरा बीनने वाले बच्चे जब अंकल कहकर पुकारते हैं तो लोगों का ध्यान उनकी ओर चला जाता है। बच्चे ही क्यों? बूढ़े, बुजुर्ग और लावारिस हाल वो तमाम लोग जिनको कोई नहीं पूछता। उनके लिए प्रमोद सिंह के प्रयास पर पुलिस कर्मचारियों और जनसहयोग से बना “हम हैं ना” रोटी और कपड़ा का इंतजाम करता है। कुछ दिनों पूर्व सड़क पर घूमने वाले बच्चों संग अपना 44 वां जन्म दिन मनाने वाले एसआई की लिखी किताब बिहार पुलिस की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स जरूर पढ़ते हैं।

रोजाना करते 25 से 30 लोगों की मदद
बिहार के भभुआ (कैमूर) जिले के रहने वाले एसआई प्रमोद सिंह के जीवन में सफलता की राह आसान नहीं थी। वाराणसी में पले और बढ़े प्रमोद का चयन 1994 में सिपाही के पद पर हुआ। 16 साल फोरेंसिक विभाग में काम करक चुके सिपाही ने वर्ष 2013 में विभागीय रैंकर परीक्षा पास कर ली। तब उनके कंधे पर दो सितारे सजे। गोरखनाथ थाना की धर्मशाला बाजार पुलिस चौकी पर तैनात दरोगा ने सबसे पहले बिना चप्पल के घूम रहे बच्चों को चप्पल पहनाई। फिर गरीब, असहाय, बीमार और मानसिक रोगियों को कपड़ा देने, उनके भोजन का इंतजाम करने और हर हफ्ते मंगलवार को लंगर चलाने के लिए धर्मशाला पुल के नीचे जगह बनाई। जहां रोजाना कम से कम 25 से 30 लोगों की मदद की जाती है।

रात में कोई न सोए भूखा, सबको मिले भोजन
30 नवंबर को प्रमोद सिंह के बर्थडे पर अनोखा आयोजन हुआ. हम हैं ना के पास जुटे बच्चों के बीच केक काटा गया। शहर के तमाम प्रतिष्ठित लोगों की मदद से बच्चों को जमकर नाश्ता कराया गया। सैकड़ों गरीब बच्चों के बीच अनोखे आयोजन की आयोजन की खूब चर्चा रही। उधर सोमवार की रात रेलवे स्टेशन पर नहाने के दौरान कपड़ा चोरी के पीडि़त असोम निवासी व्यक्ति की मदद करके प्रमोद ने मानवता की मिसाल कायम की। दरोगा ने पीडि़त को असोम तक जाने के लिए रेलवे टिकट, रास्ते में खाने के लिए भोजन और खर्च के लिए रुपए दिए। प्रमोद कहते हैं कि कोई व्यक्ति रात में भूखा न सोने पाए। हर किसी के लिए भोजन का इंतजाम होना चाहिए। खासकर, उनके लिए जो मानसिक रोगी, दिव्यांग और अन्य किसी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं।







